Chand Ka Kurta/चाँद का कुर्ता

Dinesh Kumar

Chand Ka Kurta/चाँद का कुर्ता

Chand Ka Kurta, Chand Ka Kurta/चाँद का कुर्ता

चाँद का कुर्ता

Chand Ka Kurta/चाँद का कुर्ता

एक बार की बात काहू मैं

चंदा बोला अपनी माँ से

कुर्ता एक नाप का

माँ मुझको सिलवा दे

नंगे तन बारह महीने मैं

यो ही घुमा करता

सर्दी, गरमी, वर्षा हरदम

बड़े कष्ट से सहता

माँ ने कहा पुत्र से अपने

चुमकर कर उसका मुखड़ा

बेटा खूब समझती हूं मैं

तेरा सारा दुखड़ा

लेकिन तू तो एक नाप का
कभी नहीं है रखता
घटाता बढ़ता रहता है तू
कष्ट इसी से सहता

फिर तो हर दिन का मां मेरी
मेरा नाप दिला दे
एक नहीं पूरे पंद्रह दिन तू
कुर्ता मुझे सिला दे

ये भी पढ़े – Trending Hashtags for Instagram Reels: इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स कैसे बढ़ाएं

“चाँद का कुर्ता” कविता बहुत ही पुराना कविता में से एक है बचपन में पढ़ा था और पढ़ने का बाद बचपन का वो दौर, याद ताज़ा हो जाता है जो दिल को सुकून मिलता है काश फिर से बचपन लौट आता

ये कबिता “चाँद का कुर्ता” पढने का बाद आप अपने विचार जरुर लिखे यदि संभव हो सके तो अपने सुझाव जरूर दे

8 thoughts on “Chand Ka Kurta/चाँद का कुर्ता”

  1. This is really interesting, You’re a very skilled blogger. I’ve joined your feed and look forward to seeking more of your magnificent post. Also, I’ve shared your site in my social networks!

    Reply
  2. Touch to Unlock You’re so awesome! I don’t believe I have read a single thing like that before. So great to find someone with some original thoughts on this topic. Really.. thank you for starting this up. This website is something that is needed on the internet, someone with a little originality!

    Reply
  3. Thinker Pedia You’re so awesome! I don’t believe I have read a single thing like that before. So great to find someone with some original thoughts on this topic. Really.. thank you for starting this up. This website is something that is needed on the internet, someone with a little originality!

    Reply

Leave a Comment