बहुत हुआ

Dinesh Kumar

बहुत हुआ : Bahut Hua Poem

Bahut Hua Poem, बहुत हुआ

बहुत हुआ

बहुत हुआ

बादल भैया

बहुत हुआ

किचड़ किचड़

पानी पानी

याद सभी को

आई नानी

सारा घर

दिन रात चूआ

जाए कहां

कहां पर खेले

घर में फंसे

बोरियत झेले

जो पिंजरे में

मौन सुआ

सूरज दादा

धूप खिलाये

ताल नदी

सड़को से जाये

तुम भी भैया

करो दुआ!

Summary(सारांश)

बहुत हुआ कविता का भावार्थ जब बारिश का सीज़न आता है चारो तरफ किचड़- किचड़ ही फेल जाता है बारिश की पानी के करण कवि यह कहता है कि बहुत हुआ भैया बारिश अब कम करो हमें खेलना, कूदना, घूमना है फिर कवि ये कहना चाहते है सब बंद हो गया हैम लॉग पक्षियों की तरह कैद हो चुके हैं जहां भी जाता हूँ किचड़ है खेलने में हमें तकलीफ होती है, फिर कवि आखिरी में यह कहना चाहते हैं सूरज दादा धूप खिलाये सड़क मोहल्ला हर जगह किचड़ है उसको सुखा दीजिए, कविता बहुत ही सुंदर है और बच्चों की क्लास है

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