बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
हाथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज काभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर हटो नहीं
तुम निडर डटो वही
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
हाथ में ध्वजा रहे
बल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
Writer – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
सारांश(Summary)
इस कविता का भावार्थ यह है की कवि कहते हैं वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो यानी सिर्फ तुम आगे-आगे बढ़ो चाहे जीवन में कितनी भी समस्याएं आए आपको आगे बढ़ना चाहिए और समस्याओं का समाधान करते हुए अपने देश को रक्षा भी करना है आप के हाथ में ध्वजा लिए आगे आगे बढ़ाना है आप को पीछे मुड़कर नहीं देखना है चाहे सामने पहाड़ हो, चट्टान हो या फिर सिंह की दहाड़ हो तब भी आपको नहीं रुकना है आपको आगे ही आगे बढ़ाना है फिर कवि यह कहना चाहते हैं कि आप के हाथ में ध्वज है वह कभी झुकना नहीं चाहिए और ना ही कभी रुकना चाहिए यानी आगे ही आगे आपको बढ़ाना चाहिए मुसीबत कैसे भी हो और समस्या का सामना हमें डटकर करना चाहिए
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बढ़े चलो कविता के प्रश्न उत्तर
Q. 1 बढ़े चलो कविता का सारांश
Ans – बढे चलो कविता का सारांश यह है कि कवि यह कहना चाहते हैं कि आपके जीवन में कितनी भी समस्याएं हो, आपको निरंतर अपने पथ पर चलना चाहिए, अपने मार्ग से कभी भटकना नहीं चाहिए, सामने पहाड़ है, चट्टान है, सिंह की दहाड़ हो तब भी आपको रुकना नहीं है सिर्फ आगे और आगे बढ़ना है किसी भी समस्याएं पर और आपने जो झंडा हाथ में थमा है उसे भी झुकने नहीं देना है उसे भी लेकर निरंतर आगे बढ़ना है
Q.2 वीर तुम बढ़े चलो के कवि
Ans – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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