दूर देश से आई तितली

Dinesh Kumar

दूर देश से आई तितली : Dur Desh Se I Titali Poem

Dur Desh Se I Titali Poem, दूर देश से आई तितली

दूर देश से आई तितली

दूर देश से आई तितली

दूर देश से आई तितली

चंचल पंख हिलाती

फूल फूल पर कली-कली पर

इतराती इठलाती

यह सुंदर फूलों की रानी

घून की मस्त दीवानी

हरे भरे उपवन में आई

करने को मनमानी

कितने सुन्दर पर है इसके

जगमग रंग रंगीले

लाल, हरे, बैगानी, बसंती

काले नीले पीले

कहां कहां से फूलों के रंग

चुरा चुरा कर लाई

आते ही इसमे उपवन में

कैसे धूम मचाई

डाल-डाल पर पात-पात पर

यह उड़ती फिरती है

कभी खूब ऊंची चढ़ जाती है

फिर नीचे गिर जाती है

कभी फूलों के रस पराग पर

रुक कर ही बहलती

कभी काली पर बैठ ना जाने

गुपचुप क्या कह जाती

बच्चों ने जब देखी इसकी

खुशियाँ खेल निराले

छोड़-छाड़ कर खेल खिलौने

दौड़ पड़े मतवाले

अब पकड़ी तब पकड़ी तितली

कभी पास है आती

और कभी पर तेज हिलाकर

दूर बहुत उड़ जाती

बच्चों के भी पर होते तो

साथ-साथ उड़ जाते

और हवा में उड़ते-उड़ते

दूर देश हो आते

Dur Desh Se I Titali Poem

सारांश

दूर देश से आई तितली‘ कविता बहुत ही प्रसिद्ध कविता में से एक है जो मैंने बचपन में पढ़ा था मुझे लगता है कि बहुत सारे लोगों ने पढ़ा होगा इस कविता का सारांश यह है कि बच्चों को तितली से बहुत ही प्यार होता है और बच्चे तितली के साथ खेलना चाहते हैं क्योंकि उसका जो रंग होते हैं रंग बिरंगी होते हैं कवि यह कहना चाहते हैं की जो तितली होती हैं वह दूर देश से आते हैं और आपने देखा होगा फूल पर कली पर उड़ती है और उसका रसपान करती है और बच्चे उसे देखकर खुश होता है उसके साथ खेलना चाहता है पकड़ना चाहता है और अंत में कवि यह समझाना चाहता है की यदी बच्चे के भी पंख होते तो शायद वह भी तितली की तरह दूर उड़ जाते

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